अध्याय 3 शिकायत निवारण तंत्र
शिकायत निवारण तंत्र – आईआरडीए के पास पॉलिसी धारक के संरक्षण हित विनियमन-2002 के अंतर्गत उपभोक्ताओं की शिकायतों को प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न विनियम हैं।
- i) एकीकृत शिकायत प्रबंधन प्रणाली (IGMS) – आईआरडीए ने एक एकीकृत शिकायत प्रबंधन प्रणाली (IGMS), जो बीमा शिकायत आंकड़ों के एक केंद्रीय भंडार के रूप में और उद्योगों में शिकायतों की निगरानी के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है, शुरू की है। पॉलिसीधारक अपनी पालिसी के विवरण इस सिस्टम पर रजिस्टर कर सकते हैं। उसके बाद शिकायतें संबंधित बीमा कंपनी को भेजी जाती हैं।
- ii) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 – “उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए और उपभोक्ताओं के विवादों का निपटारा करने हेतु यह अधिनियम पारित किया गया।
सेवा – बैंकिंग, वित्त, परिवहन, बीमा आदि में संभावित उपयोगकर्ताओं के लिए प्रावधान उपलब्ध कराया जाना ।
उपभोक्ता – कोई भी व्यक्ति जो कोई सामान खरीदता है या कोई सेवा का लाभ उठाता है या उसे किराये पर लेता है।
दोष – इसका अर्थ है किसी की गलती , दोष और कमी या किसी भी सेवा या ग्राहक द्वारा ली गई सेवा की गुणवत्ता, प्रकृति, ढंग या प्रदर्शन में अपर्याप्तता।
शिकायत – इसका अर्थ किसी भी अनुचित व्यापार, वस्तु या माल में दोष, सेवा में कमी या उपभोक्ता से अतिरिक्त मूल्य लेना आदि के बारे में लिखित रूप में दिए गए किसी भी आरोप से है।
उपभोक्ता विवाद – यह एक विवाद है, जहां जिनके खिलाफ शिकायत की जाती है वे उससे इनकार करते हैं और उन पर लगाए गए आरोपों से इनकार करते हैं।
लोकपाल • भारत में लोकपाल के कुल कार्यालय – 12।• लोकपाल के तहत 20 लाख मूल्य से अधिक का दावा प्रतिबंधित है।• शिकायत प्राप्त होने के 1 महीने के भीतर सिफारिशें की जानी चाहिए।• शिकायतकर्ता द्वारा ऐसी सिफारिश को प्राप्ति के 15 दिनों के भीतर लिखित में स्वीकार करना आवश्यक है।• बीमा कंपनियों द्वारा लोकपाल द्वारा पारित निर्णय के 15 दिनों के भीतर उस पर कार्यवाई करनी आवश्यक हैं।• विवाद का निपटारा नहीं किया जाता है तो लोकपाल शिकायत प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने/90 दिनों के भीतर बीमित .व्यक्ति को निर्णय/सुनवाई करना आवश्यक है।• बीमित व्यक्ति को ऐसा निर्णय देने के 1 महीने के भीतर पावती की सूचना देना जरूरी है। लोकपाल को शिकायतें की जा सकती हैं यदि:शिकायतकर्ता ने बीमा कंपनी को पिछली बार लिखित में शिकायत प्रदान की थी और बीमा कंपनी ने :• शिकायत को अस्वीकार कर दिया।• शिकायतकर्ता को बीमा कंपनी से एक महीने के भीतर कोई जवाब नहीं मिला।• शिकायतकर्ता बीमा कंपनी द्वारा दिए गए जवब से संतुष्ट नहीं है।• शिकायत बीमा कंपनी द्वारा अस्वीकृति की तिथि से एक वर्ष के भीतर की जाती है ।• शिकायत किसी भी अदालत या उपभोक्ता फोरम में लंबित नहीं है।
न्यायिक प्रक्रिया (चैनल)
राष्ट्रीय आयोग
- केंद्र सरकार की अधिसूचना द्वारा स्थापित
- एक करोड रुपये मूल्य से अधिक दावे की शिकायतें और
- किसी भी राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ अपील करना।
राज्य आयोग
- एक अधिसूचना द्वारा राज्य सरकार द्वारा स्थापित।
- 20 लाख रुपए से अधिक दावा मूल्य की शिकायतें, लेकिन 100 लाख रुपए से अधिक नहीं और राज्य के भीतर किसी भी जिला फोरम के आदेश के खिलाफ अपील करना
जिला फोरम
- राज्य सरकार द्वारा स्थापित। प्रत्येक जिले में।
- 20 लाख रुपये तक दावा मूल्य की शिकायतें।
महत्वपूर्ण दिन:
- 10 दिन – बीमा कंपनी को पॉलिसी धारक की किसी भी जानकारी का जवाब देना आवश्यक है।
- 15 दिन – ग्राहक (कूलिंग ऑफ़ अवधि/मुक्त नज़र अवधि) पालिसी को प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर अनुबंध रद्द कर सकते हैं।
- 15 दिन – बीमा कंपनी द्वारा प्रस्ताव की स्वीकृति या अस्वीकृति के बारे में पॉलिसी धारक को संप्रेषित करना आवश्यक है।
15 दिन – दावे के मामले में बीमा कंपनी सम्बद्ध दावे के दस्तावेजों को प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर अतिरिक्त दस्तावेजों के बारे में पूछ सकती है।
15 दिन – बीमा कंपनी को लोकपाल द्वारा पारित फैसले के 15 दिनों के भीतर इसे पूरा करना आवश्यक है।
- 15 दिन – प्रीमियम भुगतान की मासिक मोड के मामले में अनुग्रह अवधि (grace period)।
- 31 दिन या एक महीना – त्रैमासिक / छमाही / वार्षिक मोड के मामले में अनुग्रह अवधि।
- 30 दिन – लोकपाल को अनुशंशा करनी होती है।
30 दिन – बीमा कंपनी को दावे के दस्तावेज प्राप्त होने के बाद 30 दिनों के भीतर दावा निपटाना होता है।
90 दिन – लोकपाल को 90 दिनों के भीतर एक पुरस्कार पारित करना होता है।
180 दिन • – विवादित दावों के मामले में अधिक से अधिक समय।